हाफिज गुलाम अली ने बताया कि
इस मुबारक महीने में जिसने रोजा रखकर अपने गुनाहों से तौबा कर ली अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ कर देता है। जकात और फितरे को लेकर कहा कि सबसे पहले अपने पड़ोस में देखें फिर मोहल्ले में, अगर कोई जरूरतमंद नहीं मिलता है तब दूसरे को अदा करें।
हाफिज गुलाम अली ने बताया कि जकात फर्ज है। संपत्ति का 2.5 फीसदी हिस्सा जकात में निकालना जरूरी है। ईद की नमाज से पहले प्रति व्यक्ति दो किलो 45 ग्राम गेहूं या इसकी कीमत जरूरतमंद गरीबों को अदा करें। इतनी कीमत के कपड़े या सामान भी दिया जा सकता है। अगर कोई पड़ोस या मोहल्ले में कोई नहीं मिलता है जब किसी और को अदा कर सकते हैं। उन्होंने रोजे की फजीलत बयां करते हुए कहा कि पहला अशरा रहमत का है जो दसवें रोजे को पूरा हो जाता है। उसके बाद मगफिरत फिर दस दिन बाद जहन्नुम की आग से बचाने वाला अशरा शुरू होगा। रोजा फर्ज है, अगर बीमार हैं तब इस हालत में रोजा छोड़ सकते हैं, लेकिन ख्याल रखें कि बाहर किसी रोजेदार के सामने खाएं पीएं नहीं। गुनाहों से तौबा कर अल्लाह की इबादत करें। हाफिज गुलाम अली ने कहा कि रमजान तीन अशरों में बंटा है। अल्लाह इस महीने अपने बंदों के लिए जहन्नुम के दरवाजे बंद कर देता है। उन्होंने कहा कि इस महीने में एक नेकी के बदले 70 नेकियां मिलती हैं, लेकिन गुनाह करने पर इतने गुनाह भी मिलते हैं। इसलिए गुनाहों से बचें। उन्होंने बताया कि रोजा सिर्फ मुंह का नहीं बल्कि पूरे शरीर का होता है। इसलिए रोजे की हालत में न बुरी नजर किसी पर डालें, झूठ न बोलें।
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